बिना भौतिक उपस्थिति के कोई व्यापार नहीं: भारत में क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स के लिए स्थानीय दफ्तर अनिवार्य क्यों होने चाहिए

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नई दिल्ली। पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने क्रिप्टो सेक्टर को नियंत्रित करने की दिशा में उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। इस पूरी प्रक्रिया के हर चरण में सरकार के उद्देश्य स्पष्ट रहे हैंमनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत क्रिप्टो कंपनियों पर रिपोर्टिंग की बाध्यता से लेकर आयकर अधिनियम में कई महत्वपूर्ण संशोधन तक। लेकिन इसके बावजूद कई विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म भारतीय कानून के दायरे से खुद को बाहर मानते हुए बच निकलते हैंयह कहकर कि वे भारत से बाहर स्थित हैं और उनकी देश में कोई भौतिक उपस्थिति नहीं है। यह स्थिति अब नीतिगत अनुपालन और प्रवर्तन के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है।
साथ ही, इन विदेशी प्लेटफॉर्म्स की भारत में उपयोगकर्ता संख्या लगातार बढ़ रही है। ये पूरी तरह भारतीय कानून के दायरे से बाहर रहकर काम कर रहे हैं, जिससे दोहरा बाजार बनता जा रहा है: एक ओर वे घरेलू प्लेटफॉर्म हैं जो मनी लॉन्ड्रिंग रोधी उपायों और KYC जैसे सख्त नियमों का पालन कर रहे हैं, और दूसरी ओरछाया बाजारहैजहां विदेशी कंपनियाँ बिना किसी जवाबदेही के काम कर रही हैं, जिससे सिर्फ भारतीय उपभोक्ता बल्कि समूची अर्थव्यवस्था अस्वीकार्य जोखिमों के हवाले हो रही है।यह केवलसमान प्रतिस्पर्धा के अवसरका मामला नहीं हैयह भारत की वित्तीय संप्रभुता और उपभोक्ता सुरक्षा से जुड़ा मामला है। जब ऐसे प्लेटफॉर्म बिना किसी कानूनी या भौतिक उपस्थिति के काम करते हैं, तब पूंजी का पलायन, कर चोरी और धोखाधड़ी जैसी समस्याओं पर नियंत्रण असंभव हो जाता है।ये विदेशी प्लेटफॉर्म भारतीय उपभोक्ताओं को लक्षित करते हैं, लेकिन तो वे भारत में पंजीकृत हैं और ही भारत में किसी तरह का संचालन करते हैं। ऐसे में भारतीय नियामकों के पास उनके विरुद्ध कोई प्रवर्तनात्मक कार्रवाई करने का विकल्प नहीं रह जाता। जहां एक ओर भारतीय कंपनियाँ हर छोटेबड़े अनुपालन की चिंता करती हैं, वहीं ये विदेशी इकाइयाँ बिना किसी डर के काम करती रहती हैं।जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, इन प्लेटफॉर्म्स की स्थिति इतनी अस्पष्ट है कि तो उनका भारत में कोई दफ्तर है और ही एक भी स्थानीय कर्मचारीयानी वे पूरी तरह से जवाबदेही से बचते हुए देश में रोजगार सृजन को भी बाधित कर रहे हैं। यह स्थिति भले नई हो, लेकिन भारत इससे पहले भी ऐसे डिजिटल क्षेत्रों में इसी तरह की चुनौती से जूझ चुका है। उदाहरण के लिए, 2021 में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमों के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करना अनिवार्य किया गया था, ताकि उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा, त्वरित समाधान और कानून का पालन सुनिश्चित किया जा सके।भारत को अब निर्णायक कदम उठाने होंगे, ताकि देश की डिजिटल वित्तीय संरचना जवाबदेही और संप्रभु निगरानी पर आधारित हो कि इस संदेश के साथ आगे बढ़े कि ऐसे नियमों से आसानी से बचा जा सकता है। इन नियमों की अनदेखी से केवल सरकार के राजस्व को नुकसान होता है, बल्कि आम भारतीय निवेशक को ऐसे जोखिमों से भी दोचार होना पड़ता है, जिनकी भरपाई उसकी वित्तीय क्षमता से कहीं अधिक हो सकती है।

Hasdeo Times
Author: Hasdeo Times

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