अंतिम सांस लेने वाले कवि ने अस्पताल की व्यवस्था पर किया था प्रहार
रायपुर। प्रदेश में अनेक कवि सम्मेलनों में पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे की चर्चित कविता– जहां तेरा वजूद किश्तों में बिकता है, बावला है रे तू कविता लिखता है….. कका अभी जिंदा है…. की यादें अब शेष है। अब वे दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी समाज की व्यवस्था पर व्यंग्य करने वाली कविताएं लोगों को मुंह जुबानी याद है। प्रख्यात कवि का निधन एक शासकीय अस्पताल में हुआ। कवि सुरेन्द्र दुबे ने शासकीय अस्पताल की अव्यवस्था पर भी कभी कविता लिखी थी, जो कलांतर में सत्य साबित हुई। डॉ. दुबे ने कोरोना संकटकाल में एक चर्चित कविता का सृजन किया था, जो कि लोगों मनोमस्तिष्क में छाई हई है। पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे के साहित्यिक मित्रों से मिली जानकारी के अनुसार कोराना संकटकाल में उनकी लिखी हुई कविता आज भी लोगों को याद है, शुद्ध छत्तीसगढ़ी भाषा में जब वे मंचों पर अपनी कविता पाठ करते थे तब पूरा माहौल जीवंत हो उठता था। उनकी साहित्यिक यात्रा के दौरान उन्होंने कई कविता का सृजन किया था। उनकी कविताओं में सामाजिक विसंगतियों पर कटु प्रहार हुआ करता था। डोंगरगढ़ में चढ़….. जेकर नाम है छत्तीसगढ़ शीर्षक कविता काफी चर्चित रही। उन्होंने 11 देशों की यात्रा की थी तथा भारत के कई राष्ट्रीय मंचों में अपना नाम रोशन किया था। पद्मश्री डॉ. दुबे की मृत्यु एक स्थानीय अस्पताल में हुई थी। एक तकनीकी मशीन के खराब होने के कारण उनका इलाज समय पर नहीं हो पाया। शायद डॉ. दुबे को शासकीय अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्थाओं का अच्छाखासा ज्ञान था, उन्होंने अपनी पीड़ा इस व्यक्त की थी। सरकारी हॉस्पिटल के डॉक्टर के सामने एक शिक्षक की पीड़ा किस तरह उभरकर सामने आती है उसका वर्णन डॉ. सुरेन्द्र दुबे ने कुछ यूं किया– गरीबों की समस्याओं में कौन सा कोहिनूर जुड़ेगा मेरे बेटे का लीवर नहीं तो और क्या बढ़ेगा सरस्वती का पुजारी हूं
उतारता हूं आरती बेटा मेरा है खाता है बाल भारती कवि की व्यथा को डॉ. दुबे ने अपनी रचना के माध्यम से कुछ इस तर कहना चाहा– जहां तेरा वजूद किश्तों में बिकता है बावला है रे तू कविता लिखता है गरीबी के लिए बिक महंगाई के लिए बिक इसके बाद अगर जिंदा बच जाए तो फि र कविता लिख।




