आज राजनीति में जब स्वार्थ , अनैतिकता और तमाम तरह की बुराइयां गढ़ कर चुकी है और राजनेता एक दूसरे को नीचा दिखाने कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं , ऐसे में जयप्रकाश नारायण का एक प्रसंग सहज ही याद आता है जो नीरजा चौधरी ने अपनी किताब How praime minister Decide में लिखा है और यह याद आना और सबको याद दिलाना आपातकाल की 50 वें साल पर स्वाभाविक और जरुरी भी है क्योंकि 26 जून को भाजपा आपातकाल का 50 वां साल मना रहा है । आज से पचास साल पहले जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ पूरे देश में विरोध किया किया जा रहा है था । यह जबरदस्त विरोध पूरे दो साल चला और अंत में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की और आपातकाल हटा । नीरजा चौधरी ने अपनी किताब में लिखा है कि जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभा देवी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मां और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला देवी नेहरू में बड़ी गहरी दोस्ती थी और वे अपने घर के सुख-दुख की बातें भी एक दूसरे के साथ बांटते थे । बताया जाता है कि कमला नेहरू और जब प्रभा देवी दोनों ही सहेलियों की मृत्यु हो गई और तब तक स्वर्गीय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थी और जय प्रकाश नारायण की बेटी सुमन और बेटे कुमार प्रशांत नारायन भी युवा हो चुके थे । जय प्रकाश नारायण इंदिरा गांधी सरकार की मनमानी के विरोध में आ चुके थे । जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभा देवी की मृत्यु के बाद जब वे अपने पुराने घर को छोड़कर नये घर में जाने सामान शिफ्ट किया जाता है तब घर के एक कोने में उन्हें कमला देवी की वे पत्र मिलते है जो उन्होंने जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभा देवी को लिखे थे । वे पत्र उनके बेटे और बेटी सुमन ने अपने पिता को लाकर दिखाये , तब जयप्रकाश नारायण ने कहा कि ये पत्र इंदिरा गांधी को वापस कर आओ तो उनके बच्चों ने कहा कि इन पत्रों की फोटो कापी करा लेते हैं और वापस करेंगे तब जय प्रकाश नारायण ने कहा कि नही , पूरा लिफाफा बिना पढ़े वापस कर दो , न जाने दोनों सहेलियों ने अपने सुख-दुख की क्या बातें एक दूसरे से बांटी होंगी और अब दोनों नही है तो उनके पत्रों को पढ़ना शिष्टाचार और नैतिकता दोनों के खिलाफ है , तब उनके बेटे और बेटी ने वे पत्र बिना पढ़े ही इंदिरा गांधी को दे दिए । नीरजा चौधरी ने बड़े अफसोस से लिखा की जब वे पत्र इंदिरा गांधी ने लिये तो बड़ी बेरूखी से एक शब्द धन्यवाद कहा जबकि इंदिरा गांधी के विरोधी होने नाते वे इन पत्रों का दुरुपयोग भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया जबकि नीरजा चौधरी की किताब में यह भी लिखा है कि जब इस बात का पता उनके कुछ रिश्तेदारो को पता चला तो वे कहने लगे कि आपने उन पत्रों को क्यों वापस कर दिया , वे पत्र उनके खिलाफ हथियार थे । अब अगर आज के संदर्भ में सोचें तो क्या कोई राजनीतिक व्यक्ति अपने विपक्षी की पत्नी, मां या ऐसी कोई चिठ्ठी वापस करेगा, बल्कि आज की राजनीति में ऐसी चिट्ठियां हथियार की तरह उपयोग में लायीं जायेंगी । ऐसी राजनीतिक शुचिता शायद अब शायद ही मिले और इसलिए ही जयप्रकाश नारायण के एक आह्वान पर लाखों लोग अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े हुए थे और आज उन्हें लोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से उठकर बड़े सम्मान से याद कर रहे हैं ।




